नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-3

लक्षणा जहां तक मैं तुम्हारे सवाल के बारे में विचार करूं, क्या कभी तुमने ध्यान दिया कि शंख तीन प्रकार के होते हैं । वामावृति शंख दक्षिणावृति शंख मध्यावृति शंख

अपने आकार के आधार पर पहला ऐसा शंख (वामावृति शंख) जो उल्टे हाथ की तरफ खुलते हैं। दूसरा दक्षिणावृति शंख जो सीधे हाथ की तरफ खुलते हैं। इन दोनों पर गौर करोंगे तो वामावृति शंख आसानी से बाजार में मिल जाते, लेकिन दक्षिणावृति शंख का मिलना मुश्किल है।

क्या तुम्हें पता है कि वामावृति शंख को शास्त्र में विष्णु का स्वरूप माना जाता है, वही दक्षिणावृति शंख को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। दक्षिणावृति शंख को विधि विधान के साथ लाल कपड़ों में लपेटकर अलग-अलग स्थान पर रखने पर अनेक परेशानियों का हल वास्तु शास्त्र में बताया गया है। दक्षिणावृति शंख का सरल उपयोग लोग इसे तिज़ोरी में रखकर करते हैं जिससे घर में सुख समृद्धि बढ़ती है।

वैसे भी घर में शंख का रखना अत्यंत शुभ माना जाता है, ऐसा कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर सामान्य जल गंगाजल हो जाता है। आरती के दौरान शंख में जल भरकर जब भक्तों पर छिड़का जाता तो वह शक्ति से परिपूर्ण होता है, जिसके स्पर्श मात्र से व्यक्ति प्रफुल्लित हो उठता है, क्योंकि शंख में भरकर छिड़का जल सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होता है।

यहां तक कि यह कहा गया है कि यदि कोई भक्त शंख में जल भरकर "ओम नमो नारायण" का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराएं तो उसके पापों का नाश होता है। शंख साधक को उनकी स्थित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होता है। पूजा में जहां इसकी ध्वनि, श्रद्धा और आस्था का भाव जगाती है, वही युद्ध भूमि में जोश पैदा करती है।

रणभूमि में पहली बार शंख का उपयोग देव-असुर संग्राम में किया गया था, विभिन्न विभिन्न देवी-देवताओं के हाथों में अलग-अलग प्रकार के शंख को देखे जा सकते हैं, और सबके गुण अलग-अलग होते हैं।

"पांचजन्य शंख" के विषय में तो तुमने सुना ही होगा। इसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान मानी जाती है, समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्न जिनमें हलाहल विष जैसे भगवान शिव ने धारण किया, के पश्चात कामधेनु गाय, उच्चे:, श्रवा घोड़ा, एरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, माता लक्ष्मी, वारुणी, चंद्रमा पांचजन्य शंख, पारिजात वृक्ष, सारंग धनुष और अंत में अमृत प्रदान हुआ।

इस प्रकार पांचजन्य शंख को समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों में भी गिना जाता है। पांचजन्य शंख को छठवां रत्न माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण के गुरु पुत्र पुनर्दत को दैत्य उठाकर ले गया, तब गुरु आज्ञा से वे उसे लेने दैव्य नगरी गए थे। जहां दैव्य शंख के भीतर सोया हुआ था, जिसे मारकर उन्होंने शंख को अपने पास रखा है और जब उन्हें पता चला कि गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है, तब वे यमपुरी पहुंचे, लेकिन प्रकृति के नियम अनुसार यमदूतों ने उन्हें अंदर जाने देने से इनकार कर दिया।

तब उसी शंख से उन्होंने शंखनाद किया और सारा यमलोक हिलने लगा, जिससे घबराकर स्वयं यमराज ने आकर गुरु पुत्र की आत्मा को लौटा दिया, और श्री कृष्ण और बलराम ने लौटकर उस पांचजन्य शंख और गुरु पुत्र को अपने गुरु को सौंप दिया।

तब गुरु ने उन्हें वह शंख लौटाते हुए कहा कि, हे कृष्ण यह शंख तुम्हारे लिए है, तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने शंखनाद पर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।

इस प्रकार इतने सारे प्रसंग को सुनाने का आश्रय यह है, कि शंख से वाकई किसी भी अदृश्य द्वार को खुलने की आज्ञा दी जाती है, यदि उसे मंत्र शक्ति से बंद करके रखा गया है।

इतना सब कुछ सुन लक्षणा समझ चुकी थी कि शंख की ध्वनि को, लेकिन फिर भी उसे ना जाने क्यों उत्तर में आत्मसंतुष्टि नहीं मिल रही थी, क्योंकि इतने विशाल ज्ञान संग्रह में अपने उत्तर को ढूंढ पाना उसे ना जाने क्यों थोडा असहज सा लग रहा था, क्योंकि उसके मन में अनेकों प्रश्नों का बवंडर चल रहा था, और वह सिर्फ किसी एक विषय पर चर्चा करने के लिए मन में नहीं थे, इसलिए वो ठीक है दादाजी.... अति उत्तम कहकर वापस लौट आई, लेकिन उसका मन अभी भी अनेक संभावनाओ और असंभावनाओं की और गोते लगा रहा था।

वह गहरी सोच में डूबी हुई अपने कमरे की खिड़की के पास बैठ विचार कर रही थी, और साथ ही साथ मंद हवाओं के झोखे और बादलों द्वारा चंद्रमा के ढके जाने और पुनः चंद्रमा के निकल आने के मनोरम दृश्य को देख वह प्रफुल्लित हो मन को शांत करने का प्रयास कर रही थी, जो कि लगभग असंभव सा था।

अचानक उसे चंद्र दृष्टि एक हलचल सी नजर आई और देखते ही देखते वायुगति तेज होने लगी, उसके पहले की वह कुछ और सोच पाती, उसके समक्ष अर्थ काया जो लगभग ओझल सी थी, आकर प्रकट हो गई, जिसे देखकर लक्षणा घबराकर खड़ी होने लगी, लेकिन तभी किसी आवाज ने उसे रुकने को विवश कर दिया।

उसने पलटकर देखा और उसे अपने समीप कदंभ की उपस्थिति का अचानक भान हुआ, कदंभ कहने लगा घबराओ मत लक्षणा यह प्रतिरूप है वायु देव का ।

तुम्हें शायद याद नहीं, लेकिन तुम्हारे ही कारण प्रकृति के पांच प्रतिरूपों को नागकुंड की अवहेलना के श्राप से मुक्ति मिली थी, और इन प्रतिरूपों ने तुम्हें वचन दिया था कि आवश्यकता पड़ने पर यह स्वयं उपस्थित होकर तुम्हारी सहायता करेंगे।

लक्षणा इनका अभिवादन कर इनकी बात को ध्यानपूर्वक सुन लक्षणा ने उन्हें प्रणाम किया और उपस्थिति का कारण जानना चाहा, जिस पर उत्तम व्यवहार से संतुष्टि पाकर वह प्रतिरूप कहने लगा.... लक्षणा तुम्हें सर्वप्रथम अपनी शक्ति पर काबू पाना होगा, क्योंकि तुम्हारा मन आवश्यकता से ज्यादा विचलित हैं, और एक विचलित मन से किसी भी लक्ष्य को साथ पाना लगभग असंभव सा है, ठीक उसी तरह जिस तरह पानी में हलचल होने पर उसे दर्पण की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, इसलिए पहले स्थिर जल की तरह मन की स्थिति को मनाओ, तब कहीं तुम्हें सही दिशा का भार होगा।

पूरे विश्व में सवाल लेकर भटकने की आवश्यकता नहीं, तुम खुद सर्व समर्थ हो अपने सवालों के जवाब ढूंढने में... हमारी पंच शक्तियों ने मिलकर यह तय किया कि तुम्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु एक विशेष दिशा-निर्देश के तौर पर एक यंत्र प्रदान किया जाए, ताकि तुम्हें लक्ष्य तक पहुंचने में आसानी होगी, कहते हुए उन्होंने अपने हाथ को आगे कर लक्षणा को कहा। लक्षणा इसे गृहण करो और इतना कहते ही लक्षणा के हाथों में एक घड़ीनुमा आकृति का यंत्र जो लगभग कंपास से मिलता-जुलता था, दिखाई देने लगा, बस अंतर इतना था वह पूर्ण रुप से जैविक नजर आ रहा था।

जैसे ही लक्षणा ने उस कंपास में झांक कर देखा उन्हें एक विशेष स्थान नजर आने लगा, तब उन्होंने कहा यह शंख प्रदेश का एक स्थान हैं। शंख प्रदेश अर्थात् भारत का उड़ीसा राज्य, यहीं पर तुम्हें उस चमत्कारिक शंख के बारे में जानकारी होगी, जिसकी तुम्हें तलाश से फिर आवश्यकता पड़ने पर मुलाकात होंगी, कहते हुए हुए वे अंतर्ध्यान हो गए।

क्रमशः....

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2 Comments

Mohammed urooj khan

21-Oct-2023 12:05 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

20-Oct-2023 06:46 PM

शानदार भाग

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